नीलिमा पांडेय कहती हैं, स्त्री-विमर्श का महत्वपूर्ण आरंभिक दस्तावेज है सीमन्तनी उपदेश.
उन्नीसवीं शताब्दी में स्त्री-विमर्श की पूर्वकालिक रचनाओं से और भक्ति आंदोलन की मुखर काव्य परंपरा से क्रम-भंग दिखता है। यद्यपि विमर्श के मुद्दे इस समय भी पूर्ववत हैं, लेकिन उनमें एक नया पक्ष कानून का जुड़ता है। सती प्रथा अधिनियम, सहमति की आयु विधेयक, विधवा पुनर्विवाह, वैवाहिक अधिकारों की पुनर्स्थापना, उत्तराधिकार के अधिनियम प्रमुख थे।
इनके अलावा शरीर पर अधिकार, निजी-स्पेस, सार्वजनिक क्षेत्रों में भागीदारी, शिक्षा, आर्थिक सुरक्षा, जीवन पर अधिकार जैसे अनेक संवेदनशील मुद्दे भी विमर्श के केंद्र में आए। इस समय स्त्रियों की कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ प्रकाशित हुईं। इनमें 1882 में लिखी गई अज्ञात लेखिका की ‘सीमन्तनी उपदेश’ मील का पत्थर साबित हुई। सीमन्तनी उपदेश की लेखिका आक्रामक शैली में स्त्री मुद्दों को उठाती है। लेखिका स्त्रियों के जीवन से बेहतर कारावास के कैदियों के जीवन को मानती है जिन्हें एक निश्चित समय के लिए कैद किया गया है।
वह अपने इस विचार में पूरी तरह से स्पष्ट है कि स्त्रियों को बदतर स्थिति से छुटकारा उनके स्वयं के प्रयास से ही मिलेगा। सीमन्तनी की लेखिका कहती है, जो आदमी जेलखाने में पैदा हुआ हो, या जिसके बाप-दादा उसी कदीम में रहते हैं, वह उसी जेलखाने को बाहिस्त समझता है। अगर कोई उससे कहे कि यह जेलखाना है, या उसकी बुराइयां दिखावे तो वह जवाब देता है- ‘हमारे बाप-दादा इसी में रहते आए हैं, क्या उन्हें अक्ल न थी, हम भी इसको न छोड़ेंगे’।
सीमन्तनी की लेखिका यथार्थवादी है। वह स्त्रियों को उनके जेवर प्रेम के लिए भी लानत-मलानत भेजती है। उसकी दरकार है कि स्त्रियाँ अपनी आत्मछवि सुधारें, स्वयं को मात्र अलंकरण की वस्तु न मानें और न ही उस रूप में प्रस्तुत करें। वह स्त्रियों को अध्यात्म और धर्म की शरण में नहीं धकेलती बल्कि उसके स्थान पर वह उनकी घरेलू और सामाजिक स्थिति की गुणवत्ता में सुधार चाहती है। उसकी अपेक्षा है कि स्त्री-पुरूष सम्बन्धों में विश्वसनियता बढ़े, तभी स्त्री को उसका सम्मान और अधिकार प्राप्त होगा। उसके तर्क पुरुषवादी वर्चस्व को उद्घाटित करने वाले हैं, जो स्त्री की शारीरिक-मानसिक जकड़बंदी की प्रमुख वजह हैं।
पुस्तक की लेखिका का नाम अज्ञात है। डॉ. धर्मवीर ने इसका सम्पादन किया है जो वाणी प्रकाशन नई दिल्ली से 1982 में प्रकाशित है। अपने मूल रूप में यह पुस्तक पहली बार फरवरी 1882 में लुधियाने से प्रकाशित हुई थी। इसे आधुनिक संदर्भ में स्त्री-विमर्श का महत्वपूर्ण आरंभिक दस्तावेज माना जा सकता है
पुस्तक: सीमन्तनी उपदेश
लेखक: अज्ञात स्त्री
प्रकाशन: वाणी, नई दिल्ली
वर्ष: 1982
नीलिमा पांडेय
एसोसिएट प्रोफेसर, जे.एन. पी.जी.कालेज ,लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश
Follow NRI Affairs on Facebook, Twitter and Youtube.
हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी या अन्य किसी भी भाषा में अपनी रचनाएं आप हमें editor@nriaffairs.com पर भेज सकते हैं.