Advertisements भरत प्रसाद । फिर किसी भोर को आंखें नहीं देख पाएंगीफिर कोई सूरज हाथ जोड़ने को विवश नहीं करेगाफिर कोई धरती स्वर्ग की तरह नहीं मिलेगीफिर कोई मिट्टी आत्मा को मुक्ति नहीं देगीफिर कोई अवसर इस पृथ्वी की तरह कहाँ मिलेगा? बहुत ऋण मचलता है अपने शरीर के प्रतिसहता रहा जीवन भर सारी मनमानियांअंग-अंग … Continue reading मत जलाना मेरा ऋण!
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