अनुराग अनंत
हालात ये हैं कि कोविड कंट्रोल रूम में फोन करो बेड के लिए तो बेड ख़ाली नहीं है। टेस्ट के लिए कहो तो किट नहीं है। ऑक्सीजन के लिए कहो तो उपलब्ध नहीं है। ये शै जब न बोलने के लिए ही बनी है तो क्यों बनाया इसे?
यहाँ इलाहाबाद में टेस्ट तक कराना मुश्किल हो रहा है। सरकार को ये करना चाहिए, वो करना चाहिए। नागरिक और सिविल सोसाइटी के लोग कह कह कर थक गए हैं। पर उसकी अपनी ही चाल है। जो अभी भी मस्तानी है।
यह दौर राजनीति का नहीं है पर कहें तो किससे कहें! शिकायत किससे करें! दुःख किससे रोएं!
फिर कह रहे हैं, सरकार को विश्वविद्यालय, महाविद्यालय, और इंटर कॉलेजों को दो महीने के लिए अस्थाई अस्पतालों में तब्दील कर देना चाहिए और एक त्वरित ट्रेनिंग के माध्यम से स्वयंसेवकों की पैरामेडिकल टीम खड़ी करनी चाहिए, जिन्हें कोरोना से जुड़ी सामान्य दवाएं देने, इंजेक्शन लगाने और ऑक्सीजन देने की ट्रेनिंग दी जाए। काफी हद तक इससे राहत हो सकती है। 25-30 स्वयंसेवकों को एक डॉक्टर से सुपरवाइज़ कराया जाए।
ये कदम इस आपात परिस्थिति में सरकार को उठाना चाहिए। लेकिन सरकार की न जाने क्या ही मंशा है। वो तो टेस्ट की संख्या नियंत्रित करने में लगी है। सारे प्राइवेट हॉस्पिटल्स और प्राइवेट लैब्स में टेस्ट्स नहीं हो रहे हैं। लाल पैथ जैसी बड़ी लैब भी कोरोना का टेस्ट नहीं कर रही है, कहते हैं सरकार की रोक है।
पता नहीं क्या सत्यता है। पर बहुत बुरा हाल है। इलाज तो छोड़िए टेस्ट कराने को लाले पड़े हुए हैं। मास टेस्टिंग और वैकल्पिक अस्पतालों की बहुत जरूरत है सरकार। सुन सकते हैं तो सुनिए। अब कुछ ठोस और प्रभावी करने का समय है।
मेरी कुछ विशेषज्ञ मित्रों से बात हो रही थी। उनका कहना है कि पंचायत इलेक्शन और कुम्भ समापन का असर तो अभी देखने को मिलेगा। कोरोना गांवों में भी पसरेगा। स्थिति को समय रहते भांप कर अभी भी कड़े और असरदार कदम उठाए जाएं नहीं तो तस्वीर में स्याही और आंखों में आंसू बढ़ जाएंगे। इस मझधार के उस पार लोग किस्मत से पहुंचेंगे। सिस्टम तो स्वयं मझधार है। जो उस पार पहुंचेंगे वे इस हृदयहीन नायकत्व वाले समय की कहानी सुनाएंगे।
अनुराग अनंत साहित्यकार हैं और इस वक्त उत्तर प्रदेश में कोरोना पीड़ितों की मदद की मुहिम चलाए हुए हैं।
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इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं. इन्हें NRI Affairs के विचार न माना जाए।