मंज़िल को ध्यान में रखकर की गई यात्राएं निहायत ही उबाऊ होती हैं. मकसद मंज़िल नहीं मंज़िल तक ले जाने...
डॉ. नूतन कुमारी की ग़ज़लेंआदतन सच अगर बताओगे,मिस्ले आईना तोड़े जाओगे।होगे शाख़-ए-समर अगर तुम भीचोट पत्थर की ख़ूब खाओगे।ग़ौर इस...
A poem by Nandini Mehra. In a world of sorrow i did not make,a world i was given, i did...
नीलिमा पांडेय की किताब 'लख़नऊ शहर: कुछ देखा-कुछ सुना' इस शहर की ऐतिहासिकता को समकालीनता के सापेक्ष देखने का एक...
अजय गोयल. चिड़ियों की तरह चहकता और झरने जैसा मुस्कराता हुआ, सुबह-सुबह सज़ा-सँवरा भव्य दादी की अँगुली थामे घर से...
अपरिचितहम एक-एक शब्द जोड़कर बनाते हैंछोटे-छोटे पुलजिस पर चलकर हमें एक-दूसरे के करीब आना होता हैहमारे पास अविश्वास करने के...
संध्या नायर"इसे वहां ले जाओ!" - चित्रगुप्त ने नरक के धधकते मुख की और इशारा करते हुए, यमदूतों को आदेश...
ओम प्रकाश नदीम क्या पचेगा क्या बचेगा कुछ न सोचा खा गयेइस क़दर भूखे थे झूठे सच को कच्चा खा...
मनमोहन सिंह सक्सैनासच्ची बातें, दिल से दिल तकढोंगी करते मन की बातवो क्या जाने, गुज़रे सब पर!वो तो जाने धन...
चंद्रधर शर्मा गुलेरीइसे हिंदी की पहली कहानी कहा जाता है. यानी सबसे उम्रदराज कहानी. लेकिन आज भी यह कहानी का...