दुनिया के कोने जरूर बंटे हुए हैं लेकिन उनमें बसने वाली औरतों की दुनिया लगभग एक-सी ही है। आसुंओं के खारेपन में डूबी हुई..
नीलिमा पाण्डेय ।
‘पाकिस्तानी स्त्री: यातना और संघर्ष’ ज़ाहिदा हिना की किताब है। नाम से साफ़ है कि किताब के केंद्र में पाकिस्तान की स्त्रियों का दुःख-दर्द है। ये अलग बात है कि जब हम किताब से रूबरू होते हैं तो यह स्त्रियों का साझा दर्द लगता है। दुनिया के कोने जरूर बंटे हुए हैं लेकिन उनमें बसने वाली औरतों की दुनिया लगभग एक-सी ही है। आसुंओं के खारेपन में डूबी हुई…
हर कौम ने अपनी औरत को कभी ख़ुदा का वास्ता दिया तो कभी दुनियादारी का। ख़ुदा और दुनियादारी की आड़ में उसके हक़ मारे जाते रहे। कभी उसे आसमानी हवाओं से बहकाया गया तो कभी जमीनी संहिताओं में दर्ज़ बर्बर नियम-कानून उसे दहला गए। स्त्री अपने बर्दाश्त की हद बढ़ाती रही, जुल्म भी बढ़ते रहे । फ़िर धीरे-धीरे वक़्त बदला। जमाने की बदलती हुई हवाओं ने औरत पर भी असर डाला। उसके जेहन पर पड़ी हुई सदियों की गर्द हवा के झोकों से कुछ तो अपने आप उड़ी और कुछ औरतों ने उसे साफ करने के लिए ख़ुद हाथ-पाँव मारे। उसने मन में दबे हुए सवालों को आवाज़ देनी शुरू की। उसके जेहन में एक सौ ख्याल और उनकी बाबत एक हज़ार सवाल पैदा हुए।
इन ख्यालों और सवालों से सूरत-हाल कुछ तो बदला लेकिन बहुत कुछ अभी बदलना बाकी है। इस बदलाव की हर औरत शिद्दत से आस लगाए बैठी है। फ़िर वो पाकिस्तान की हो या हिंदुस्तान की। ईरान की हो या इंगलिस्तान की। आदम और हव्वा का किस्सा हम जानते ही हैं। दरअसल, इस दूर तक फैली जमीन पर सारी रौनक हव्वा के दम से है, वरना आदम का इरादा तो यह था कि ख़ुदा के बंदे ख़ुदा के हर हुक्म पर सर झुकाते हुए बाग-ए-अदन यानी ‘जन्नत के बाग’ में जिन्दगी कभी न खत्म होनेवाले समय तक गुजार दें। यह हव्वा थी जिसके अंदर जिज्ञासा थी, जिसने साँप के रूप में आनेवाले इब्लीस (शैतान) से संवाद किया। अच्छे-बुरे की पहचान करानेवाले पेड़ का फल खुद खाया और आदम को भी खिलाया। लेकिन जमीन पर कदम रखते ही उसकी किस्मत बदल गयी। आदम और हव्वा का ये किस्सा मिथक जरूर है पर इस सवाल को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि साथ-साथ शुरू होने वाले सफ़र में औरत क्यों बराबर पीछे छूटती गई।ऐसा क्यों हुआ? यह गहन शोध का विषय है।
पाकिस्तान की विख्यात कथाकार और राजनीतिक टिप्पणीकार ज़ाहिदा हिना की इस पुस्तक में कुल सात लेख हैं जो पाकिस्तान की स्त्रियों की सामाजिक स्थिति और प्रस्थिति को रेखांकित करते हैं। बेशक़ पुस्तक के संदर्भ पाकिस्तान की आम स्त्रियों की यातनाओं और संघर्षों के हैं, लेकिन स्त्री की यह लोमहर्षक गाथा कहीं न कहीं भारत की भी है, बांगलादेश की भी और एक तरह से सारी दुनिया की स्त्रियों की है। ‘पाकिस्तानी स्त्री : यातना और संघर्ष ‘ ज़ाहिदा हिना की उर्दू में प्रकाशित पुस्तक ‘औरत जिंदगी का जिन्दां’ का हिंदी अनुवाद है। अनुवाद शक़ील सिद्दीकी ने किया है। पुस्तक में अलग-अलग अवसरों पर लिखे गए सात निबंधों का संकलन है। निबंध विशेष रूप से मुसलमान स्त्री के त्रासद और कठिन संघर्ष से संबंधित हैं। हिंदी में इसे वाणी प्रकाशन,दिल्ली ने प्रकाशित किया है।
नीलिमा पांडेय
एसोसिएट प्रोफेसर, जे.एन. पी.जी.कालेज ,लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश
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