‘लख़नऊ शहर: कुछ देखा-कुछ सुना’ – एक झरोखा इतिहास का
Advertisements नीलिमा पांडेय की किताब ‘लख़नऊ शहर: कुछ देखा-कुछ सुना’ इस शहर की ऐतिहासिकता को समकालीनता के सापेक्ष देखने का एक बेहतर झरोखा है. उपशीर्षक में ‘कुछ देखा’ इसके वर्तमान की तस्दीक करता है जो गवेषणा, सत्यापन और व्यक्तिगत निरीक्षण पर आधारित है तो ‘कुछ सुना’ इसके तारीखी प्रमाणों की पड़ताल, संग्रह, संचय अध्ययन के … Continue reading ‘लख़नऊ शहर: कुछ देखा-कुछ सुना’ – एक झरोखा इतिहास का
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