ऑस्ट्रेलिया सरकार ने भारत से यहां आने पर जुर्माने और जेल का प्रावधान कर दिया है. लेकिन इस कानून से प्रभावित होने वाले ज्यादातर भारतीय मूल के लोग हैं जो यहां बस चुके हैं. अगर प्रभावित श्वेत नागरिक होते, तब भी क्या सरकार का यही रुख होता?
रुचि भारती
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भारत के मौजूदा हालात को देखते हुए ऑस्ट्रेलिया ने वहां से पूरी तरह ट्रैवल ही बैन नहीं किया बल्कि उसके उल्लंघन पर 66 हजार डॉलर के जुर्माना और लगभग छह साल की जेल की घोषणा भी कर दी.
शायद यह इतिहास में पहली बार हुआ होगा जब किसी देश ने इस महामारी में अपने ही नागरिकों को अपने ही देश मे आने पर इतना कड़ा रुख अपनाया हो. यह न सिर्फ अमानवीय और असंवेदनशील है बल्कि अतार्किक भी है.
अब अहम बात ये है कि भारत में फंसे लगभग नौ हजार ऑस्ट्रेलियावासी कौन हैं. इनमें से अधिकतर वही हैं जो मूल रूप से भारतीय हैं और रोजगार, कारोबार शिक्षा के चलते ऑस्ट्रेलिया में बस गये. उनमें से बहुत से सालों बाद ऑस्ट्रेलिया के नागरिक हो गये हैं और बाकी स्थायी निवासी हैं.
ऑस्ट्रेलिया एक लोकतांत्रिक देश है तो अधिकार सभी के समान ही हैं. आमतौर पर यहां भेदभाव नही होता. पर क्या सच में यहां भेदभाव नहीं होता? भेदभाव मनुष्य के मूल व्यवहार का हिस्सा है शायद, जो अलग अलग तरीके से समाज में विद्यमान रहता है.
ब्राह्मणवाद हो या श्वेत श्रेष्ठता, बहुत नियम कानून बनाने के बाद भी ये मनुष्य के मूल चरित्र या व्यवहार से अलग हो नहीं पाते.
ऑस्ट्रेलिया को सींचने, उसे बेहतर बनाने में अन्य आप्रवासी लोगों की तरह भारतीयों का भी अहम योगदान है. ये वही भारतीय नागरिक हैं जिन्होंने अपना सब कुछ इस मुल्क को दिया. यहां तक कि अपनी पूर्व नागरिकता भी सरेंडर कर दी.
लोकतांत्रिक तरीके से वोट डालकर अपने लिये एक मजबूत सरकार चुनने वाले नागरिक आशा करते हैं कि अच्छे बुरे हर वक़्त में सरकार उनका साथ देगी.
हम जानते है कि भारत इस समय भयानक महामारी से जूझ रहा है लेकिन अपने नागरिकों के प्रति ऑस्ट्रेलिया सरकार की जिम्मेदारी क्या है? अगर यही नौ हजार लोग श्वेत होते, तब भी क्या ये कानून लागू होता?
विश्व के बहुत देशों ने इस मुश्किल घड़ी में अपने नागरिकों की पुनः वापसी की व्यवस्था की लेकिन ऑस्ट्रेलिया ने अपने ही नागरिकों को पुनः वापसी तो दूर उनके लिये सख़्त क्रिमिनल कानून बना दिया जबकि ऑस्ट्रेलिया सरकार अपने नागरिकों पर सख़्त कानून थोपने की जगह क्वॉरन्टीन व्यवस्था को ज्यादा मजबूत और कठोर कर सकती थी. अभी तक नागरिक अपने ख़र्चे पर होटलों में क्वॉरन्टीन कर ही रहे थे जो बेहतर चल रहा था.
यह सत्ता का एक अमानवीय और भेदभावपूर्ण चेहरा है जो वक़्त दर वक़्त हर जगह दिखाई देता है.
रुचि भारती गायिका हैं. वह मेलबर्न में रहती हैं और गाना सिखाती भी हैं.
वह मानवाधिकार विषयों, खासकर दलितों के अधिकारों को लेकर लंबे समय से काम कर रही हैं.