अनु भरत ।
क़िस्मत की सिलवटों को सहेजते हुए,
नज़्मों में चाँदनी को उकेरते हुए,
गुनगुनी धूप में एक कप ब्लैक काॅफी की तरह,
इबादत में उलझे दीवानें किसी सूफ़ी की तरह,
कभी चुभता हुआ अक्स , कभी धुँधला सा साया होकर,
कभी नन्ही सी ख़्वाहिश की अनछुई सी माया होकर,
वो ढूँढती फिरती थी ….
लकीरों के बियाबान में……
बस एक “स्लाइस” ज़िंदगी ।
वो कुरकुरा सा एक “स्लाइस”
जो रेंगते हुऐ लम्हों को ताज़ादम कर देता हो,
जो ख़ुश्क होती यादों को फिर नम कर देता हो।
वो छोटा सा एक “स्लाइस”
जो सागर सी गहरी शिकायतों को फ़ीका कर दे
जो कुनैन सी लगती रिवायतों को मीठा कर दे।
वो ज़ायक़ेदार सा एक “स्लाइस”
जो किसी पाइनेप्पल सिरप में डूबे चाॅकलेट
हेज़लनट केक की तरह,
उसके ख़्यालों की चाश्नी में भीगा भीगा सा हो,
उसके स्पर्श की रोशनी में निखरा निखरा सा हो।
वो महका हुआ एक “स्लाइस”
जिसे वो ज़माने से छुपकर
बेमक़सद दौड़ते वक़्त से नज़र बचा
एक अलसायी हुई सुबह के पार्श्व में
उमंगों की “ग्रीन टी” की चुस्कियाँ लेते हुए
धीरे-धीरे गिलहरी की तरह कुतरती रहे … कई सौ वर्षों तक ।
कल रात चाँद को ख़त लिखा था उसने
अब इंतज़ार में बैठी है।
संदेशा आता ही होगा… देखें कहाँ मिलती है
वो एक “स्लाइस” ज़िंदगी.
अनु भरत सिडनी में रहती हैं. टीचर हैं, ऐक्टर हैं. और सबसे बढ़कर कवि हैं. उनकी कविताएं जिंदगी की झलकियां बहुत करीने से चुनती हैं और उन्हें आधुनिक भाषा में पेश करती हैं.
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Image by Jose Antonio Alba from Pixabay
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