भारत में हाहाकार मचा है. हर तरफ से मौत की खबर आ रही है. शायद ही कोई बचा हो जिसका कोई अपना मरा नहीं है. पर क्या ये मौतें सिर्फ बीमारी की वजह से हो रही हैं? रिपब्लिक टीवी चैनल के पत्रकार विक्रांत बंसल ने कल अपने पिता को खो दिया. कैसे? उनकी इस फेसबुक पोस्ट में पढ़िए… लेकिन कलेजा पक्का करके पढ़िएगा, क्योंकि यह कहानी दिल तोड़ती है.
विक्रांत बंसल की फेसबुक पोस्ट (Representative Image by floerio from Pixabay)
मैंने शायद ही कभी सोशल मीडिया पर कभी कुछ लिखा होगा बिटिया के सिंगिंग के अलावा लेकिन आज इसलिए लिख रहा हूं ताकी दिमाग में जो कुछ चल रहा है जो मुझे सोने नहीं दे रहा वो लिख कर शायद दिल की भड़ास निकल जाए। 26 April का दिन था करीब 2.30 बजे मैं ऑफिस से निकल ही रहा था कि मां ने फ़ोन पर बताया पापा उल्टियां कर रहे हैं क़रीब 4 बजे जब घर आया तो पापा मुझे देखते ही बोले चले बेटा। इतनी बेसब्री से शायद ही कभी उन्होंने किसी का इंतजार किया होगा जितना उस दिन मेरा किया ।
तुरंत मैं पापा के साथ नजदीकी डॉक्टर के पास गया और कुछ ट्रीटमेंट लिया लेकिन पापा ने कहा मुझे हॉस्पिटल ले चल । यहीं से शुरू हुआ जिंदगी और मौत का सफर सबसे पहले मैं मैक्स हॉस्पिटल गया । हॉस्पिटल ने कहा ये कोविड केस है हम नहीं ले सकते इमरजेंसी तक भी नहीं जाने दिया। रोते हुए मैंने अपने सीनियर को फ़ोन किया उन्होंने कहा रो मत विक्रांत मैं बात करता हूं। मुझे लगा मैक्स वाले शायद entry दे दे। लेकिन कुछ देर बाद मेरे सीनियर ने मुझे एक नंबर दिया कहा इस पर बात कर लो बात बन जायेगी।
मैंने बात की तो उन्होंने भी एक नंबर दिया और कहा MlA साहब का नाम लेना काम हो जायेगा। मैंने ऐसा ही किया मुझे बताया गया। बेड मिल जायेगा ऑक्सीजन के साथ लेकिन treament नहीं हो पाएगा। अब मैंने अपनी एक दोस्त जो की anchor हैं उनको फ़ोन किया। उन्होंने मुझे मयूर विहार धर्म शीला हॉस्पिटल केशायद सीईओ अनुज का नंबर दिया। उन्होंने कहा हॉस्पिटल आ जाओ ।
मैंने सोचा अब शायद पापा बच जाए। मन में सोचा अब अपनी एंकर दोस्त को हमेशा सपोर्ट करूंगा उसका एहसान मंद रहूंगा।
इतने में मैं धर्मशिला हॉस्पिटल पहुंच गया। मेरे पापा का टेस्ट हुआ वो कॉविड पॉजिटिव थे। अब धर्मशिला हॉस्पिटल ने भी हाथ खड़े कर दिए। मेरे पापा गाड़ी के शीशे से इशारे करते रहे की मुझे एडमिट क्यों नहीं करते ये लोग। मेरे पास कोई जवाब नही था।अब मैं निकला सरकारी अस्पताल की ओर। GTB, lNJP हर हॉस्पिटल में गुहार लगाई।
दिल्ली सरकार के कई MLA को फ़ोन किया। मनीष सिसोदिया के PA अनीस से भी बात की सबने एक ही बात कहीं can’t help। अब मैंने अपने दोस्त कुणाल अशीत को फ़ोन किया। उसने कई कोशिशों के बाद मेरे पापा के लिए एक हॉस्पिटल में बात कर ली क़रीब रात के 11 बज चुके थे मैं हॉस्पिटल पहुंच गया। लेकिन पापा की बिगड़ती स्थिति को देखते ही उन्होंने कहा हमारे पास ऑक्सीजन लगभग खत्म हो गया हम एडमिट नही कर सकते। कुछ देर बाद हमें रोता देख उन्होंने पापा को एडमिट कर लिया लेकिन मुझे कहा 4 घंटो में पापा को कहीं ओर ले जाना नहीं तो ये मर जायेंगे। पापा को एडमिट करा कर मैंने सारी रात लगभग दादरी के 20 हॉस्पिटल में जा जा कर बात की एक भी हॉस्पिटल में ऑक्सीजन नही था।
सुबह होने वाली थी मेरी हिम्मत नहीं हुई कि मैं हॉस्पिटल के अंदर जाऊं इसलिए मैं कार में बैठ कर सबसे बात करता रहा। यकीन मानिए इस देश के लगभग 50 बड़े पत्रकारों से बात कर चुका था। अजीत अंजुम सर को सुबह 4 बजे फ़ोन किया तो उन्होंने रोते हुई आवाज़ में कहा बेटा मुझे माफ़ करना मेरा दोस्त मेरे सामने मर रहा है मैं कुछ नहीं कर पा रहा। उन्होंने भी अपनी तरफ से कोशिश तो की ही होगी। अब सुबह हो गई और मेरे पापा को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया।
बहुत सारे बड़े पत्रकारों का नाम इसलिये नहीं लिख रहा क्यों कि वो दिन भर सरकार के समर्थन में लिखते हैं लेकिन कोई मदद नहीं कर पाए। ओर मेरा मकसद उनको छोटा साबित करना नही है।
अब मैं अपने पापा को लेकर RML की ओर निकला एबुलेंस में। रास्ते में एपोलो हॉस्पिटल आया मैंने सोचा कहीं रस्ते में कुछ हो ना जाए अपोलो हॉस्पिटल में भर्ती करवाया जाए। इमरजेंसी वार्ड में lady doctor थी बोली विक्रांत please किसी बड़े आदमी से मैनेजमेंट में फोन करवा दो नहीं तो तुम्हारे पापा पर जायेंगे। उन्होंने मुझे कुछ नाम भी बताए जिनको फ़ोन करना था। इतने में एक आदमी आया ओर बोला we spoke to chairman please talk to Ur senior। Doctor ne मेरी तरफ देखा और बोली see what happens Please call someone। मैंने बिना देर किए अपने सीनियर को फ़ोन किया नाम भी बताए। उन्होंने कोशिश भी की लेकिन कोई मदद नहीं मिली। अब हमने सोचा एक क्यों न वहां दिखाया जाए जहां पापा ने कभी कभी अपना ट्रीटमेंट भी कराया था चड्डा क्लिनिक लेकिन वो अब बंद था।
इस बिच मैंने मनोज तिवारी, हंस राज हंस, राखी बिड़ला, जितेन्द्र तोमर और भी कई हस्तियों को फ़ोन किया लेकिन किसी ने फ़ोन नहीं उठाया। अब शाम होने वाली थी। पापा उखड़ती हुई सास में बोले मुझे घर ले चलो अब नहीं बचूंगा मम्मी और मेरे बच्चों से मिलवा दो। लेकिन मैंने नहीं मानी और अब हम मैं और मेरा भाई जो खुद भी कोविड पॉजिटिव है करीबी हॉस्पिटल लाल बहादुर शास्त्री हॉस्पिटल आ गए। यहां तक आते आते मेरे पापा अब बेहोश हो चुके थे 2 घंटो में यहां हमारे सामने कई लोग मर चुके थे। Doctor ने कहा इनको लेकर सब्दरजंग या आरएमएल जाओ। दिल्ली सरकार की ambulence बुलाई जो 1:30 घंटे तक नहीं आई हर बार एक ही जवाब आ जायेगी। फाइनली हमने पापा के लिए ambulene कैसे तैसे arange की और RML की ओर निकल पड़े।
नहीं पता था ये पापा की ज़िंदगी का आखिरी पड़ाव है।
हॉस्पिटल में जाने के 1 घंटे तक डाक्टर ने पापा को देखा तक नहीं। फिर उनको ऑक्सीजन पर शिफ्ट कर दिया और मुझे एक पर्चा थमा दिया की ये 5 floor हैं जहां बेड मिल जाए देख लो। थोड़ी ही देर बाद वो बोले पापा को अब Intubate करना होगा। लेकिन मैक्सिमम चांसेस है कि ना बच पाए। पहले एक डॉक्टर ने कोशिश की जिससे नही हो पाया। पापा की दोनो आखों ओर गले को intubate करने में फाड़ चुके थे। अब Sr doctor आया और उसने पाइप लगा दिया। मैं और मेरा भाई कोविड मरीजों के बीच अपने पापा को 12 घंटो तक गुब्बारे से हवा देते रहे। 5 minutes वो 5 minutes मैं यकीन मानिए 5 minutes Intubate आप तभी कर सकते हो जब आप किसी को अपनी आत्मा से प्यार करते हो।
अब सुबह हो चुकी थी। हमारे साथ जो मरीज़ आए थे उनमें से बहुत सारे मर चुके थे। Doctor ने मेरे पापा की विलपावर देख कर कहा। Please doctor chhada , doctor Rana या किसी मिनिस्टर से बात कर लो आपके पापा बच जाएंगे। मैंने मिनिस्टर हर्ष वर्धन जी तक को फ़ोन करवा भी दिया और खुद भी किया। No help बार बार ये जानने के लिए की पापा अभी है कि नही मेरे पास एक ही जरिया था मैं अपने बेटे की तुतलाती आवाज़ में बोलता था की दादू मैं ये के रहा था की मैं आपका फोन ले लू। मेरे बेहोश पापा अपने पैर के पंजे हिलाने लगते थे।
आखिरकार जब मैंने उनको कहा मैं हार गया उन्होंने अपनी आखरी सांस ले ली।
अब हम abulenene वाले के पास गए तो वो बोला 10000 se 13000 lagenge अलग अलग जिसका जितना मन किया उतना बोल दिया। शमशान घाट जाते ही। वहां भी लोग गिद की तरह खड़े थे जिस काम के 100 रुपए भी नही देता कोई उसके लिए हजारों रुपए लोग लूटने में लगे थे।
भगवान से एक ही अनुरोध है या तो सबको पॉलिटीशियन बना दो नहीं तो सब पॉलिटीशियन को सबक सिखा दो।
(हम इस पोस्ट को पब्लिश करने की इजाजत विक्रांत बंसल से नहीं ले पाए हैं क्योंकि इस दुख की घड़ी में उनसे इस तरह की बात करने की हिम्मत नहीं हुई.)