ओम प्रकाश नदीम
क्या पचेगा क्या बचेगा कुछ न सोचा खा गये
इस क़दर भूखे थे झूठे सच को कच्चा खा गये
कुछ न कर पाया अदालत का पुलिस का इंतज़ाम
फ़ैसले से पहले ही वो सब का हिस्सा खा गये
हमको लगता है तुम्हें बाज़ीगरी महंगी पड़ी
हमने धोखा खाया लेकिन तुम भरोसा खा गये
लोग ख़ुश होते रहे बाहर की रौनक़ देख कर
और वो घुन की तरह भीतर का ढांचा खा गये
छोटे भाई को बचाने का जतन उल्टा पड़ा
वो तो पीटा ही गया हम भी तमाचा खा गये
लोग जागें जागें तब तक घर के चौकीदारों ने
जाने क्या क्या बेच डाला जाने क्या क्या खा गये
सब का मालिक एक है ये कैसे मानें हम “नदीम”
धर्म के कीड़े ये जज़्बा जाने कब का खा गये
ग़ज़लकार और संस्कृतिकर्मी ओम प्रकाश नदीम का जन्म 26 नवंबर 1956 को फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ. वह कई नाटक भी लिख चुके हैं. सांस्कृतिक संगठन इप्टा से उनका गहरा जुड़ाव रहा है. उनकी दो कृतियां दिया ख़ामोश है और सामना सूरज से है (ग़ज़ल संग्रह) प्रकाशित हो चुकी हैं. भारतीय लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग में वरिष्ठ लेखाधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हैं और लखनऊ में रहते हैं.