यह एक बायोग्राफी है। जीवन वृत एक ऐसी स्त्री का जो इतिहास में अपना नाम दर्ज करवा गई।
इतिहास में इस किरदार का नाम बेगम समरू है। हम जानते हैं कि इतिहास में वही नाम दर्ज होते हैं जो ख़ास होते हैं, आम नहीं। फिर बेगम समरू तो स्त्री हैं। यकीनन आदमियों की दुनिया मे दर्ज हो जाने वाली इस स्त्री में कुछ तो अलहदा होगा। गौर फरमाने पर हम ये पाते हैं कि बेगम समरू की पूरी जीवन गाथा एक तनी हुई रस्सी पर चलने जैसी है। जरा सा नियंत्रण खोया नहीं कि पूरी बाजी हाथ से गयी।
यह बेगम समरू के आम से ख़ास बनने की दास्तान है। इसे पढ़ते हुए हम जानते हैं कि बेगम ने किस तरह कोठे से महल तक का सफर तय किया। ऐसे सफर इतिहास में दूसरी बेगमों के नाम भी हैं। बेगम समरू की खासियत ये है कि वह महल की चारदीवारी में कैद नहीं रहीं बल्कि जंग के मैदान तक गईं। राजतंत्र में जंग के मैदान तक एक योद्धा के रूप में पहुंचने के मायने से हम सब वाकिफ़ हैं। यही प्रशासनिक और सैन्य कुशलता बेगम समरू को इतिहास में एक अलग स्थान दिलवाती है।
बेगम समरू अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध का चरित्र हैं। उनकी इस रोचक-रोमांचक इतिहास की गाथा को राज गोपाल सिंह वर्मा जी ने बेहद सलाइयत और संजीदगी से लिखा है। जब भी इतिहास की पृष्ठभूमि पर कोई साहित्यिक रचना लिखी जाती है तो पहली शर्त ये होती है कि उसे विधा की गरिमा के अनुरूप लिखा जाए अन्यथा वह , साहित्य और इतिहास , दो पाटों में झूल कर रह जाती है। राजगोपाल जी बेगम समरू का सच लिखते हुए विधा की गरिमा को बनाये रखने में सफल हुए हैं। इसलिए वे प्रसंशा के पात्र हैं। इतिहास में रुचि हो तो इस जीवन वृत को जरूर पढ़िये।
स्त्रियों को कमतर समझने वाले हमारे समाज को इतिहास के ऐसे किरदारों पर एक नज़र तो डालनी ही चाहिये। जब आप इसे पढ़ेंगे तो यकीनन आपके कई ख्याल और पूर्वाग्रह जिबह होंगे। बेगम का पैदाइशी मुसलमान होना बाद में कैथोलिक ईसाई बन जाना राष्ट्रीयता की वर्तमान अवधारणा पर प्रश्नचिन्ह लगा सकता है। इतिहास का खाका बनाने में,आगे की तफ्तीश कर शोध को नये आयाम देने में निश्चित रूप से राजगोपाल जी की ये कृति सहायक होगी। जीवन वृत के अंत मे दिया गया घटनाक्रम का सिलसिलेवार ब्यौरा इस दृष्टि से विशेष महत्वपूर्ण है।
270 पृष्ठों के इस जीवनवृत्त को तैतीस छोटे-छोटे हिस्सों में बाँट कर बेगम के जीवन के 58 बरसों को समेटा गया है। इसे पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि इतिहास में पुरुषों का वर्चस्व किस कदर है कि हर तरह से काबिल बेगम को पहचाना उनके पति नाम से गया। अपने पति के नाम पर ही वह बेगम समरू कहलाई। या फिर रियासत के नाम पर सरधना की बेगम के नाम से पुकारी गईं। उनका खुद का नाम फरजाना कहीं खो गया।
इसीलिए इतिहास को ‘HIS STORY’ भी कह दिया जाता है। HER वाला हिस्सा इतिहास से प्रायः नदारद है। विकट परिस्थितियों के बावजूद कुछ स्त्रियों ने इतिहास में एक खास मक़ाम हासिल किया, खुद को दर्ज किया। आपकी नजर उन पर कब पड़ी अलग मुद्दा है।
नीलिमा पांडेय
एसोसिएट प्रोफेसर, जे.एन. पी.जी.कालेज ,लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश
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