‘पर्सेपोलिस’ मार्जान सतरापी की लिखी सचित्र आत्मकथा है। एक ऐसी आत्मकथा जिसमें आईने की तरह आप कथा चित्रों के बीच अपनी परछाईं भी देखते चलते हैं।
ढेर सारे द्वंद्व और विरोधाभास को ख़ुद में समेटे यह आत्मकथा राजनीति , समाज और व्यक्तिगत जीवन को एक धुरी पर साधे हुए चलती है। आत्मकथा जीवनानुभवों का दस्तावेज होती है। यहाँ भी मार्जान के तमाम अनुभव हैं, जिनसे हम बतौर पाठक गुजरते हैं। अनुभव जिनका मर्म संवेदना से ओतप्रोत है , अनुभव जिनमें व्यंग्य की चुभन है , सार्वजनिक और व्यक्तिगत जीवन के बीच की खाई है , उनके बीच के द्वंद्व , विरोध और विद्रोह हैं ; सभी का बेबाक जिक्र है ।
कुल मिलाकर जीवन के साथ मार्जान की अंतरंगता का बेलौस बयान है पर्सेपोलिस। उनको पढ़ते हुए हम महसूस करते हैं कि वह अपने बयान और विचार में बेहद स्पष्ट और लोकतांत्रिक हैं। कथ्य के साथ खींचे गए चित्रों ने उनके बयान को चेहरा देकर उन्हें और ख़ास बना दिया है। जीवन के खुरदरेपन को निरंतरता में मार्जान बख़ूबी बयान करती हैं।
ईरान की इस्लामिक क्रांति , स्त्री विमर्श , बहुसंख्यक वैचारिकी (hegemony) , हिप्पोक्रेसी ऑफ स्टेट बिलीफ्स को उद्धाटित करती यह रचना महत्त्वपूर्ण है। मूल रूप से फ्रेंच में लिखी गयी , अन्य अनेक भाषाओं में अनुदित , पर्सेपोलिस अपने नाम की वजह से भी आकर्षित करती है। नाम से पहले-पहल ऐसा लगता है कि ये कोई ऐतिहासिक दस्तावेज है। प्राचीन ईरान (पर्शिया) की सभ्यता के बारे में पढ़ते हुए इतिहास का विद्यार्थी पेसरगेदाये , पर्सेपोलिस , सूसा , एकबताना इन नामों से परिचित होता है।
पर्सेपोलिस का अर्थ ‘सिटी ऑफ पेर्शियन्स’ है। इतिहास में ईरान का भू-भाग फारस (फार्स) ,पारस , पर्शिया आदि नामों से जाना जाता था। ईरान संबोधन 1935 में दिया गया जिसका अर्थ ‘आर्याना बाएजो’ (आर्यों की उतपत्ति ) है।
सचित्र आत्मकथा एक नया प्रयोग है। इसे पढ़ना एक नया अनुभव । पर्सेपोलिस का यह हिन्दी अनुवाद वाणी प्रकाश से आया है।
नीलिमा पांडेय
एसोसिएट प्रोफेसर, जे.एन. पी.जी.कालेज ,लखनऊ विश्वविद्यालय, उत्तर प्रदेश
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