मोपासां की कहानी ‘क्या यह सपना था’ को यहां से देख रहे हैं सुधांशु गुप्त
गाइ द मोपासां को आधुनिक कहानी का पितामह माना जाता है। मोपासां और चेखव कहानी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले लेखक हैं। माना यह भी जाता है कि बाल्जाक के बाद मोपासां सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। दिलचस्प बात है कि गोर्की, तुर्गनेव, तोल्स्तॉय जैसे लेखक मोपासां के मुरीद रहे। यह भी चकित करने वाली बात है कि मोपासां की लेखकीय उम्र महज बारह साल थी। इस काल में, उन्होंने लगभग 300 कहानियां और छह उपन्यास लिखे। इसके अलावा भी लेखन कार्य किया। मोपासां 1850 में पैदा हुआ और 1892 में मर गए। मन में बार बार यह सवाल पैदा होता है कि आखिर उनकी कहानियों में ऐसा क्या था, जो उनकी मृत्यु के 130 सालों बाद भी जीवित है। उनकी कहानियों के सच बदले क्यों नहीं?
मोपासां की एक कहानी है ‘क्या यह सपना था’ !
कहानी का सार इस तरह हैः
नायक बेहद आत्मीयता से अपनी प्रेम कहानी कह रहा है। वह कहता है, मैं पागलों की तरह प्यार करता था। पूरे एक साल मैं उसकी कोमलता, प्रेम स्पर्शों, उसके बाजुओं, उसके परिधानों, उसके शब्दों में खोया रहा। फिर एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। उस दिन बहुत तेज बारिश हुई थी। वह भीगी हुई घर लौटी। अगले दिन उसे खांसी हो गई। वह पूरे एक सप्ताह खांसती रही, उसने बिस्तर पकड़ लिया। इसके बाद बहुत कुछ हुआ। डॉक्टर आया, उसने दवाइयां मंगवाई। उसकी मृत्यु हो गई। नायिका को कब्र में दफ़्ना दिया गया। नायक नीमबेहोशी की हालत में उसे खोजते हुए कब्रिस्तान पहुंच जाता है। वह बहुत-सी कब्रों के बीच अपनी प्रेमिका की कब्र खोज रहा है। थककर वह एक कब्र पर बैठ जाता है। अचानक उसे लगता है कब्र का ऊपरी हिस्सा हिल रहा है। नायक देखता है कि कब्र खुल गई है और उसमें से मृत व्यक्ति बाहर आता है। रात बहुत गहरी थी लेकिन नायक वह क्रॉस पर लिखा यह पढ़ सकता थाः यहां जॉक ओलिवांत सो रहे हैं, इनकी मृत्यु 51 वर्ष की उम्र में हुई। वह अपने परिवार से प्रेम करते थे, वह दयालु और ईमानदार थे, और प्रभु की कृपा से इनकी मृत्यु हो गई।
मृतक भी कब्र पर लगे पत्थर पर लिखे हुए को पढ़ता है। फिर वह एक नुकीले पत्थर से लिखे हुए को मिटा देता है और उसकी जगह लिखता हैः यहां जॉक ओलिवांत सो रहे हैं। इनकी मृत्यु 51वर्ष की उम्र में हुई। यह बड़ी कठोरता से अपनी पिता की मृत्यु का कारण बने, क्योंकि उनकी इच्छा अपने पिता की विरासत पर कब्जदा करने में थी। इसने अपनी पत्नी और बच्चों का उत्पीड़न किया, अपने पड़ोसियों को धोखा दिया, इसने हर वय्कित को लूटा जिसे लूट सकता था, और यह घृणित इंसान मर गया। नायक देखता है कि सभी कब्रें खुली हुई हैं। सभी मृत आत्माएं कब्रों से बाहर आ गई थीं, वे परिजनों और संबंधियों द्वारा कब्रों पर लिखे गए झूठ को मिटा रहा थीं और उसकी जगह सच लिख रही थीं। नायक देखता है कि सभी मृतक अपने पड़ोसियों के उत्पीड़क थे-दुर्भाग्यपूर्ण, बेईमान, पाखण्डी, झूठे, बदमाश, निंदक और ईर्ष्यालु थे। इन सबने चोरियां कीं, धोखे दिए, इन्होंने हर वह काम किया जिसे अनैतिक या शर्मनाक कहा जा सकता है। सभी अपनी अपनी कब्रों से निकलकर भयानक और पवित्र सत्य लिख रहे थे।
नायक सोचता है कि उसकी प्रेमिका भी अवश्य ही अपनी कब्र पर कुछ लिखेगी। नायक उसकी कब्र तक पहुंच जाता है। वह बिना उसका चेहरा देखे ही उसे पहचान लेता है। संगमरमर के क्रॉस पर नायक ने कुछ देर पहले पढ़ा था- उसने प्रेम किया, प्रेम पाया और वह मर गई। अब वह वहां लिखा हुआ देखता हैः अपने प्रेमी को धोखा देने के लिए एक दिन यह घर से बाहर निकली, वह बारिश में भीग गई, उसे सर्दी लग गई और उसकी मृत्यु हो गई।
मोपासां अपनी इस कहानी में प्रेम का वर्णन नहीं कर रहे और ना ही वह यह दिखा रहे हैं कि प्रेम का अंत इस रूप में होता है। मोपासां अपनी इस कहानी में जीवन के उस सच को दिखा रहे हैं, जिसे हम अपने आदर्शों और नैतिकतांओं के चलते कभी स्वीकार नहीं करते। हम यही मानकर चलते हैं मृत आदमी अच्छा ही होता। अपने आदर्शों, नैतिकताओं और मूल्यों के चलते कभी मृत व्यक्ति के बारे में अपशब्द नहीं कहते। यह अकारण नहीं है कि जब भी आप कहानियों को नैतिकता के दायरे में क़ैद करेंगे तभी कहानी कमजोर होग। मोपासां का कहना था कि किसी भी सरल महिला का जीवन मुझे उस पर कहानी लिखने के लिए प्रेरित नहीं करता। मंटो बराबर अपनी कहानियों में समाज के नंगेपन को दिखाते रहे। जब लोगों ने उनकी कहानियों पर कहा कि वे अश्लील और नाकाबिले बर्दाश्त हैं तो मंटो ने कहा कि आपका समाज अश्लील और नाकाबिले बर्दाश्त है। मंटो ने अपनी कहानियों में कहीं भी आदर्श की बात नहीं की, इसलिए वे महान कहानीकार हैं।
मोपासां लगातार अपनी कहानियों में ज़िन्दगी के वे तस्वीरें दिखाते रहे, जिन्हें हम अपने कथित मूल्यों के चलते नहीं देख पाते। मोपासां जिन्दगी को सरल नहीं मानते थे। उनका मानना था कि जिन्दगी जितनी बाहर से दिखती है, उतनी सरल नहीं है। अगर कोई व्यक्ति सड़क पर घूम रहा है तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उसके भीतर दुख, समस्याएं और उदासियां नहीं हैं। मोपासां इन्हीं उदासियों की बात करते हैं। ‘क्या यह सपना था’ ! कहानी में मोपासां ने जिस टूल के ज़रिये जीवन सत्य को उद्घाटित किया है, वही इस कहानी को कालजयी बनाता है। मोपासां की अन्य कहानियों में भी जीवन अपनी वास्तविकता के साथ दिखाई देता है, वह जीवन के कथित आदर्शों और नैतिकताओं के बोझ से अपनी कहानियों को कमजोर नहीं होने देते। यही कारण है कि उनकी कहानियां इतना समय बीत जाने के बाद भी जिवित हैं और रहेंगी। मोपासां की कहानियां आपकी आत्मा को छूती हैं। क्या यह सपना था, भी इसका अपवाद नहीं है।
सुधांशु गुप्त। कहानियां लिखते हुए तीन दशक हो चुके हैं, लेकिन जो चाहता हूं उसका पांच प्रतिशत भी नहीं लिख पाया। कहने को तीन कहानी संग्रह-खाली कॉफ़ी हाउस, उसके साथ चाय का आख़िरी कप, स्माइल प्लीज़ छप चुके हैं। चौथा संग्रह ‘तेरहवां महीना’ भी पूरी तरह तैयार है। लेकिन लिखना मेरे भीतर के असंतोष को बढ़ाता है। और यही असंतोष मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए मैं जीवन में किसी भी स्तर पर संतोष नहीं चाहता! किताबों से मेरा प्रेम ज़ुनून की हद तक है। कहानियां मेरे जीवन में बहुत अहम हैं लेकिन वे जीवन से बड़ी नहीं हैं।
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मुख्य तस्वीरः Deflyne Coppens from Pixabay