देखिए, इस्राएली लेखक एतगार केरेत की कहानी ‘सीख’ को कैसे देख रहे हैं सुधांशु गुप्त…
ये अजीब बात है। हम अपने बच्चों को नैतिकता, संस्कार और शिष्टाचार की सीख देते हैं। हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे हमारे दिए मूल्यों से ही आगे बढ़ें। बच्चा जब बोलना सीखता है तो हम हर सवाल का जवाब बच्चे को बताते हैं। हम उसे सोचने की छूट नहीं देते। इस डर से कहीं बच्चा ग़लत जवाब ना दे दे।
वास्तव में बच्चे अपने ही घर में देखते हैं कि उन्हें दी जाने वाली सारी शिक्षाएं उन्हें दुनियादार बनाने के लिए हैं। वे बच्चों को सिखाते हैं कि अन्याय का विरोध करो। लेकिन यदि बच्चा अन्याय का विरोध करता है तो वे बच्चे को गैर दुनियादार बताकर उसकी उपेक्षा करते हैं। जहां भी बच्चे दुनियादारी की सीमाएं लांघते हैं पेरेंट्स को दिक्कत होती है। वास्तव में पेरेंट्स सिर्फ यही चाहते हैं कि वे नैतिक और संस्कारी दिखें लेकिन दुनियादारी उनके लिए सर्वोत्तम गुण है। सारे नैतिक मूल्यों की धुरी उनके लिए दुनियादारी है।
इस्राएली लेखक एतगार केरेत ने बच्चों के लिए बेहद अच्छी कहानियां लिखी हैं। आज जिस कहानी पर चर्चा करेंगे वह केरेत की ही लिखी है। ‘सीख’ शीर्षक से इस कहानी का हिन्दी अनुवाद वरिष्ठ साहित्यकार और अनुवादक जितेन्द्र भाटिया ने किया है।
कहानी का सार इस प्रकार हैः
एक बच्चे को उसके पिता बार्ट सिंपसन का गुड्डा दिलवाने से मना कर देते हैं। पिता का मानना है कि बच्चे को पैसे की कोई कद्र नहीं है। अगर बच्चा अभी से पैसे की कद्र करना नहीं सीखेगा तो कब सीखेगा? बच्चे को पैसे की कद्र सिखाने के लिए पिता उसे चीनी मिट्टी का एक बेढंगा सुअर लाकर दे देते हैं। यह एक प्रकार की गुल्लक है। इस खिलौने के आने के बाद उन्हें लगता है कि अब बच्चा ठीक से बड़ा होगा और मवाली नहीं बनेगा। अब बच्चे को हर सुबह दूध का एक कप पीना पड़ता है। उसे मलाई वाले कप का एक शेकेल मिलता है, बिना मलाई वाले का आधा। बच्चा सिक्कों को सुअर की पीठ में डालता रहता है। सुअर को हिलाओ तो आवाज़ होती है। पिता कहते हैं कि जब सुअर में इतने पैसे हो जाएंगे तो वह हिलने पर आवाज़ नहीं करेगा। तब उसे स्केटिंग करते बार्ट सिंपसन का गुड्डा मिल जाएगा। पिता कहते हैं कि ऐसे बच्चे को कुछ सीखने का मौका तो मिलेगा।
बच्चे को सुअर अच्छा लगने लगता है। वह उसका नाम पेसेक्सन रख देता है। बच्चा पाता है कि सुअर बिना सिक्का डाले भी मुस्कराता है। धीरे-धीरे बच्चा सुअर से भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। बच्चा सुअर में सिक्के डालता रहता है। एक दिन उसके पिता एक हथौड़ा लाकर उसे देते हैं और कहते हैं कि फोड़ ड़ालो इस सुअर को। अब तुम्हें बार्ट सिंपसन का गुड्डा मिलेगा। बच्चे को लगता है पेसेक्सन उसे देखकर मुस्करा रहा है, बच्चा समझ जाता है कि पेसेक्सन का अंत आ चुका है। बच्चा पिता से कहता है कि उसके लिए पेसेक्सन ही बहुत है। पिता कहते हैं, तुम्हें कुछ सिखाने के लिए ही हम कह रहे हैं। तुम कहो तो मैं ही इसे फोड़ देता हूं। बच्चा एक और शेकेल की मांग करता है और पिता को लगता है कि उन्होंने बच्चे को कितना समझदार बना दिया है। रात में बच्चा पेसेक्सन से कहता है, घबराओ मत मैं तुम्हें बचाऊंगा।
रात में पिता के सोने के बाद बच्चा पेसेक्सन के साथ बाहर निकल जाता है। अंधेरे में काफी देर चलने के बाद वह झाड़ियों वाले एक मैदान में पहुंचता है। वह अपने आप से कहता है, सुअरों को खेत बहुत अच्छे लगते हैं। वह पेसेक्सन को देखता है। पेसेक्सन भी उसे आखिरी बार उदासी से देखता है। बच्चा उसे वहीं छोड़ देता है। वह जानता है कि अब पेसेक्सन कभी मुझे नहीं देख पाएगा।
बस कहानी इतनी ही है।
इस कहानी में एतगार केरेत बच्चों पर आरोपित किए जा रहे, मूल्य और संस्कारों को चित्रित कर रहे हैं। कहानी में वह दिखाते हैं कि पेरेंट्स किस तरह बच्चों को उसी तरह दुनियादार बनाना चाहते हैं, जिस तरह वे हैं। बच्चों के मनोविज्ञान को समझने का वे कोई प्रयास नहीं करते। बच्चों की हर गतिविधि को वे इस रूप में देखना चाहते हैं जिससे उनका, परिवार का सम्मान बढ़े। बच्चा क्या चाहता है, इससे पेरेंट्स का कोई लेना देना नहीं है। ना ही पेरेंट्स बच्चों के मनोविज्ञान को समझते हैं। एतगार केरेत की यह कहानी हमें बच्चों की उस दुनिया से वाकिफ़ कराती है, जैसी दुनिया बच्चे चाहते हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण कहानी है।
सुधांशु गुप्त। कहानियां लिखते हुए तीन दशक हो चुके हैं, लेकिन जो चाहता हूं उसका पांच प्रतिशत भी नहीं लिख पाया। कहने को तीन कहानी संग्रह-खाली कॉफ़ी हाउस, उसके साथ चाय का आख़िरी कप, स्माइल प्लीज़ छप चुके हैं। चौथा संग्रह ‘तेरहवां महीना’ भी पूरी तरह तैयार है। लेकिन लिखना मेरे भीतर के असंतोष को बढ़ाता है। और यही असंतोष मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए मैं जीवन में किसी भी स्तर पर संतोष नहीं चाहता! किताबों से मेरा प्रेम ज़ुनून की हद तक है। कहानियां मेरे जीवन में बहुत अहम हैं लेकिन वे जीवन से बड़ी नहीं हैं।
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