रेखा राजवंशी ऑस्ट्रेलिया में बसी लेखिका हैं. हिंदी में लिखना ही नहीं, हिंदी की सेवा करना भी उनके संकल्पों में शामिल है. पढ़िए, उनकी यह कहानी…
घन्न ..घन्न .. दरवाज़े की घंटी से आँखें खुलीं। शाम का धुंधलका छाने लगा था। बैडरूम की अधखुली खिड़की के बाहर डूबते हुए सूरज की किरणें फर्श पर आख़िरी साँसें भर रहीं थीं। कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था। अब्दुल ने सोचने की कोशिश की कि आज तारीख क्या है? शायद पच्चीस अप्रैल है। फिर घंटी बाजी, मन तो नहीं था पर लगा कि उठ कर देख ही ले। शायद शारदा आंटी होंगी। सोसाइटी के फ़्लैट में रहने वाली शारदा आंटी टिफिन सर्विस देने का काम करतीं हैं। खाना छोड़ने के पहले वे तीन चार बार घंटी बजा देती हैं।
अब्दुल को पिछले पांच दिन से बुखार चल रहा है। शरीर के सारे अंग दुःख रहे हैं। वैसे तो आजकल कुछ खाने का मन नहीं करता फिर भी बीवी ने सख्त ताकीद है कि घर का बना खाना ही खाया करो। तो शाम का टिफिन लगवा लिया है। मुंबई में इन दिनों कोविड का प्रकोप बढ़ गया है, तो बाहर खाना वैसे भी सेफ नहीं है। उठ कर किसी तरह दरवाज़े तक गया। खाने का डिब्बा उठाया, मंथर गति से चला हुआ एक गिलास पानी ले सोफे में धंस गया। शरीर का हर हिस्सा दर्द से टूट रहा है।
अब्दुल छह महीने पहले ही ऑस्ट्रेलिया से मुंबई आया है। माँ की तबियत ठीक नहीं थी, उसे याद कर रही थी, तो जैसे ही फ्लाइटें खुलीं उसने फ्लाइट बुक की और मुंबई आ पहुंचा। उसे याद है आते वक़्त ‘चिंता मत करना मैं जल्दी वापस आ जाऊंगा’ कहकर उसने दोनों बच्चों और फ़ातिमा को समझा लिया था। अच्छा मौका था, पहली बार इतना समय मिला था। कोविड की वजह से नौकरी से रिडण्डेंसी मिल गई थी। लगा कुछ दिन अम्मी की सेवा कर ले।
सोच ही रहा था कि तभी मोबाFल बजने लगा। आएशा का फोन था, आएशा बहुत लाड़ली बेटी है अब्दुल की। इस साल लॉ पूरा किया है। करीम उससे तीन साल बड़ा है, नौकरी कर रहा है, समझदार है, सबका धयान रखता है।
‘डैड, खाना खाया या नहीं? जाओ लेकर आओ। चलो मेरे सामने खाओ।’ आएशा डाँट रही थी, फ़ातिमा और करीम भी चिंतित नज़र आ रहे थे। जबरन मुस्कुराने की कोशिश की।
सोच रहा है कि कैसे बताए कि कल ही उसकी रिपोर्ट कोविड पॉज़िटिव आई है।
कवयित्री और लेखिका रेखा राजवंशी पिछले बीस वर्षों से सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में रह रहीं हैं। वहां वे हिंदी भाषा और साहित्य के प्रचार के लिए कार्यरत हैं। सिडनी विश्वविद्यालय में प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में उन्होंने कई वर्ष हिंदी पढ़ाई है। उनकी सात पुस्तकें प्रकाशित हैं। ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न शहरों के कवियों को जोड़कर दो काव्य संकलनों का भी संपादन और एक का सह-संपादन किया है। प्रवासी साहित्य में उनका विशेष योगदान है. वहां के आदिवासियों की लोक कथाओं का उन्होंने अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया है जिसके लिए इन्हें राष्ट्रीय स्तर का पुरस्कार मिला। साहित्य अकादमी दिल्ली और विश्वरंग भोपाल में उन्हें आमंत्रित किया गया। ऑस्ट्रेलिया और भारत की संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित भी किया गया हैं। 1996 में राष्ट्रपति श्री शंकर दयाल शर्मा ने अन्य कवयित्रियों के साथ काव्य पाठ के लिए इन्हें आमंत्रित और सम्मानित किया। रेखा राजवंशी की कहानियों का पहला संकलन किताबघर से प्रकाशित हुआ है।
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