जयवंती शुक्ला में कविमन है, ये मैं तब से जानता था जब से उन्हें नाटक में काम करते देखा. किरदारों को समझते देखा. लेकिन वह कविता करती हैं, ये यकीन मुझे तब हुआ जब उन्हें जरूरतमंदों के लिए तन मन धन से काम करते देखा. उनकी ये कविताएं उसी कविमन की एक झलक हैं – विवेक आसरी
खेल (पिठू,लगोरी,सतोलिया)
एक दो तीन चार पांच छः सात!
और “पिठू” बन गया!!
गेंद मारने वाला ,हाथ मलता रह गया,
कमाल है ये खेल!
ज़िन्दगी में मिले सीमित पलों में,
आराम से आंखें मूंदे
मन यादों का पिठू बनाए
एक दो तीन चार पांच
अचानक वर्तमान की गेंद ,लगती ठप्प से,
हड़बड़ा कर आंखें खोल,
मन अनमना सा,
“टाइम प्लीज़” कह,
रोज़मर्रा की रूटीन में जज़्ब हो जाता,
ये क्या कम है कि, जिंदगी की भागमभाग में,
कभी पिठू बनाकर खेल पूरा होता
कभी चैलेंज अधूरा भी रह जाता
मोहब्बत से छिपना
“मोहब्बत छूने से मैली होती है”,
ये उसने पाकिस्तानी ड्रामे में सुना था,
मोहब्बत को देह से दूर रखने की कोशिश में,
वो खुद मोहब्बत बन गई,
इश्क मुश्क छिपाए नहीं छिपता,
ऐसा एक शेर उसने पढ़ा था,
अफ़सोस लुकाछिपी की तनातनी में,
नज़रों में प्रेमी को न भर सकी,
इश्क उम्र दराजों का दायरा नहींज़माने का है कहना यही,
वो झट अपने प्रेमी को कृष्ण बना,
खुद राधा बन कृष्ण भजन गाने लगी
अकवि की अकविता
थाम के भावों की तीव्रता,
उच्च स्तर पर पहुंचे कविता,
संवेदनाओं की तीव्रता जब बनें असहनीय,
काश तब ईश-मूर्ति की आंख से,
बहते वेदना के आंसू से, मैं कविता रच राहत पाऊं ,
क्या ये होगा संभव?
मेरी कुंठाएं जब शब्दों के, दायरे से हो जाएं बड़ी,
तब बंद कमरे में,
सिर पटकती तड़पती गौरैया के,
तिल तिल मरने की छटपटाहट से,
उपजे शब्दों से रचूं कविता,
क्या ये होगा संभव?
ईश्वर की मूर्ति के आंसू और,
गौरैया के छटपटाहट के शब्दों से , वंचित मैं,
संवेदनाओं से उपजी कुंठाओं का ठीकरा,
उठाए और भटकने के लिए हूं अभिशप्त।
जयवंती शुक्ला. कला और प्रकृति प्रेमी हूं इसीलिए हर तरह की कलाओं पर फ़िदा रहती हूं. बचपन में कत्थक और शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा कुछ समय के लिए ही हो पाई जिसका कारण पिता के लगातार होते तबादले, जिससे भारत भ्रमण हुआ और देश से परिचय हुआ. भोपाल से हिंदी साहित्य से एम.ए. करने के दौरान सांस्कृतिक गतिविधियों में हिस्सा लिया और थिएटर के प्रति झुकाव हुआ. कविताएं और कहानियों का लेखन भी जारी रहा. मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है, सिद्धांत को मानती हूं. पिछले छः सालों से समाज के प्रति अपने दायित्व को समझते हुए कुछ कार्यक्रम करे जैसे सफाई कर्मचारी महिलाओं और वंचित वर्ग के बच्चों के लिए साक्षरता अभियान. ‘Paint the wall’ अभियान भी. राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट (NMF) संगठन की कस्टोडियन सदस्य हूं. अपनी कंपनी Abhivyanjna theater creations की डायरेक्टर हूं जिसके तहत नौ नाटकों के कई शो किए और स्वयं भी मंच पर आई. हाल ही मैला ढोने वालों के जीवन पर एक शॉर्ट फिल्म बनाई है जो जल्द ही दिखेगी.
मुख्य तस्वीरः CANDICE CANDICE from Pixabay
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