संध्या नायर
“इसे वहां ले जाओ!” – चित्रगुप्त ने नरक के धधकते मुख की और इशारा करते हुए, यमदूतों को आदेश दिया।
“महाराज! ऐसा क्या पाप हो गया! मैंने तो पूरा जीवन दान दक्षिणा दी हैं।” मैं गिड़गिड़ाते हुए चित्रगुप्त के चरणों में जा गिरी ।
“दान दक्षिणा तो ठीक है, पर तुम पर आरोप है, अन्न के अपमान का। देखो, कितना भोजन ज़ाया किया तुमने।”
चित्रगुप्त ने मेरे बीते हुए जीवन का चलचित्र बादलों के पर्दे पर चला दिया।
अपनी रसोई में खड़ी मैं, प्लेट में बची रोटी,डस्टबिन में सरका रही हूं। कभी फ्रिज में दो हफ्ते से पड़ी, अधगली सब्जियों को ज्यों का त्यों कूड़े की थैली के हवाले कर रही हूं ।
क्या करती, ऑस्ट्रेलिया में काम वाली बाई नहीं होती ना! इसलिए न जीते जी स्वर्ग मिल सका न मरने के बाद ही।
संध्या नायर का जन्म बहादुरगढ़, हरियाणा में हुआ. 20 वर्ष पूर्व वह भारत छोड़ कर न्यू जीलैंड और वहां से ऑस्ट्रेलिया पहुंचीं. स्नातकोत्तर की शिक्षा Symbiosis Pune से पूरी करने की बाद लगभग 15 वर्षों तक प्रॉज्क्ट मैनेजमेंट में काम किया. अब वह मेलबर्न में रहती हैं और पारिवारिक बिजनस संभाल रही हैं. हिंदी कविता से गहरा प्रेम और रुचि. कई वर्षों से लिख रही हैं और उनकी कविताएं कई अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं और कविता संग्रहों में छप चुकी हैं. फिलहाल अपने काव्य संकलन पर काम कर रही हैं और शीघ्र ही किताब का लोकार्पण होगा. अनुवाद कार्य में भी रुचि है और हिंदी के तीन लघु उपन्यासों और कहानी संग्रहों का अंग्रेजी में अनुवाद कर चुकी हैं. साहित्य के साथ साथ योग विज्ञान और नेचुरोपैथी में गहरी रुचि है और निशुल्क योग शिक्षा केंद्र भी चलाती हैं.